۱۵ مهر ۱۴۰۳ |۲ ربیع‌الثانی ۱۴۴۶ | Oct 6, 2024
मौलाना साजिद रिजवी

हौज़ा / ज़मीन की रक्षा करना हर देश और समुदाय का नैतिक और वैधानिक अधिकार है। लेबनानियों के लिए, अपनी मातृभूमि को विदेशी ताकतों से बचाना आवश्यक था, और हिज़बुल्लाह ने इसी भावना के साथ अपने आंदोलन की शुरुआत की। इस संघर्ष के दौरान, हिज़बुल्लाह का मुख्य उद्देश्य अपनी ज़मीन की रक्षा और इसराइल के कब्जे का विरोध था। अपनी ज़मीन को वापस लेने की लड़ाई में किसी समुदाय का प्रतिरोध करना गलत नहीं हो सकता, क्योंकि यह उनकी ज़मीन और जीवन की रक्षा का सवाल है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी !
लेखकः सय्यद साजिद हुसैन रिजवी

इसराइल और हिज़बुल्लाह के बीच संघर्ष एक जटिल राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक परिप्रेक्ष्य में देखा जाना चाहिए। 1982 में जब इसराइल ने लेबनान पर हमला किया और वहां के हिस्सों पर कब्ज़ा किया, तो यह क़दम न केवल अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के खिलाफ़ था, बल्कि लेबनान की संप्रभुता और उसकी जनता के लिए भी अन्यायपूर्ण था। इसी संदर्भ में हिज़बुल्लाह का उदय हुआ, जो एक प्रतिरोध आंदोलन के रूप में विकसित हुआ और इसराइल द्वारा कब्ज़ाई गई भूमि को वापस लेने के लिए संघर्ष किया।

ज़मीन की रक्षा करना हर देश और समुदाय का नैतिक और वैधानिक अधिकार है। लेबनानियों के लिए, अपनी मातृभूमि को विदेशी ताकतों से बचाना आवश्यक था, और हिज़बुल्लाह ने इसी भावना के साथ अपने आंदोलन की शुरुआत की। इस संघर्ष के दौरान, हिज़बुल्लाह का मुख्य उद्देश्य अपनी ज़मीन की रक्षा और इसराइल के कब्जे का विरोध था। अपनी ज़मीन को वापस लेने की लड़ाई में किसी समुदाय का प्रतिरोध करना गलत नहीं हो सकता, क्योंकि यह उनकी ज़मीन और जीवन की रक्षा का सवाल है।

इसराइल ने, इतिहास में कई बार, संघर्ष के दौरान बड़े पैमाने पर हवाई हमले और सैन्य कार्रवाई की, जिसमें बच्चों और मासूम नागरिकों की जान गई। इसराइल की सैन्य कार्रवाइयों में कई बार उन स्थानों को निशाना बनाया गया, जहां आम नागरिक रहते थे।  ऐसे मामलों में, खासकर 2006 के लेबनान युद्ध के दौरान, अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों ने इसराइल की बर्बरता की आलोचना की, जिसमें बच्चों और मासूमों की हत्या की गई। ये हमले न केवल असंवैधानिक थे, बल्कि मानवता के खिलाफ़ थे। इसराइल द्वारा इन निर्दोष नागरिकों को मारना एक ऐसा अपराध है जिसे अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत युद्ध अपराध माना जाना चाहिए।
इसके विपरीत, हिज़बुल्लाह ने हमेशा यह सुनिश्चित करने की कोशिश की कि उनकी लड़ाई केवल सैनिकों और कब्जे की ताकतों के खिलाफ़ हो। कोई भी रिपोर्ट यह साबित नहीं कर सकती कि हिज़बुल्लाह ने जानबूझकर सिविलियंस को निशाना बनाया हो, जबकि इसराइल ने कई बार सिविलियन आबादी पर हमले किए हैं। इस दोहरे मापदंड को समझना ज़रूरी है कि कौन अपने अधिकारों की रक्षा कर रहा है और कौन निर्दोष नागरिकों पर हमला कर रहा है।

इसराइल का बच्चों और नागरिकों को मारना न केवल नैतिक रूप से गलत है, बल्कि यह अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकारों का सीधा उल्लंघन है। हिज़बुल्लाह के संघर्ष को मात्र आतंकवाद के रूप में देखना एक स्टीरियोटाइप है, जबकि असलियत यह है कि वे अपने अधिकारों और भूमि की रक्षा के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

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